रामलला की मूर्ति में छिपी आस्था और आध्यात्मिकता

अयोध्या के भव्य राम मंदिर में विराजमान रामलला की मूर्ति ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की गहराई को उजागर किया है। यह मूर्ति भगवान राम के बाल स्वरूप को दर्शाती है, जिसमें उनकी शादी नहीं हुई थी। इसलिए, मुख्य मंदिर में मां सीता की मूर्ति नहीं है।

रामलला की मूर्ति की विशेषताएं उनकी आध्यात्मिक यात्रा और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रकट करती हैं। मूर्ति के ऊपर भगवान सूर्य की आकृति है, क्योंकि भगवान राम सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के थे। मूर्ति में भगवान विष्णु के दस अवतारों की आकृतियाँ भी हैं।

भगवान राम की काले रंग की प्रतिमा 4.25 फ़ीट ऊंची है जिसका वजन लगभग 200 किलोग्राम है । इस प्रतिमा में भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाया गया है ।

सबसे ऊपर सूर्य भगवान है उसके निचे भगवान विष्णु के दस अवतार है । सबसे ऊपर बीच में भगवान विष्णु है । उनके बायीं तरफ ऊपर से पहला अवतार मत्स्य , दूसरा कूर्म , तीसरा वराह है । चौथा अवतार नरसिंह है जो की भगवान विष्णु के दाहिने तरफ है । पांचवा अवतार वामन है । छठा अवतार परशुराम है । सातवां अवतार भगवान राम है । आठवां अवतार कृष्ण है ।नौवां अवतार बुद्ध है और दसवां अवतार कल्कि है । भगवान विष्णु के पैरों के पास दोनो तरफ गरुड़ जी है।

रामलला की मूर्ति का निर्माण और स्थापना का प्रक्रिया भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की गहराई को दर्शाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी संस्कृति और धर्म हमें एकता, प्रेम, और शांति की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होगी। इस दिन, भगवान राम की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा । इस अवसर पर, भक्तगण अपनी आस्था और समर्पण की भावना को व्यक्त करेंगे।